जीवन परिचय महाराणा सांगा - आपका पूरा नाम महाराणा संग्रामसिंह आप परम यशस्वी महाराणा कुंभा के पोत्र तथा रायमल के पुत्र थे। आपका जन्म विक्रम संवत 1539 वैशाख बदी नवमी ईस्वी संवत 12 अप्रैल 1482 को हुआ । आपकी राणी का नाम कर्णवती और आप के चार पुत्र उदय सिंह द्वितीय भोजराज राणा विक्रमादित्य थे ।
राजतिलक - ज्योतिषी ने भविष्यवाणी की राणा सांगा ही राजा बनेगा, उनके राज्य की प्रबल संभावना है फिर क्या था उनके बड़े भाई पृथ्वीराज जिनको उड़ना राजकुमार कहा जाता है और जयमल इर्ष्या से ग्रस्त होकर उन को मारना चाहते थे । उनकी इस लड़ाई में राणा सांगा की एक आंख भी चली गई इसके बाद अजमेर के कर्मचन्द पंवार ने राणा सांगा को उनके भाइयों से बचाकर उनको संरक्षण प्रदान किया करमचंद पवार ने राणा सांगा को अज्ञातवास में रखा और जब तक उनका राजतिलक हो न गया तब तक उनके आश्रयदाता बने रहें उनके बड़े भाइयों की मृत्यु के उपरांत राणा सांगा का राजतिलक 24 मई 1509 को हुआ।
सांगा के समकालीन विरोधी - कहते हैं ना कि आपने विजय श्री हासिल की है यह उतनी महत्वपूर्ण नहीं होती इस में चार चांद तो तब लगते हैं कि आपने किस वक्त परिस्थितियों और किस के समक्ष विजय हासिल की है।
सांगा मेवाड़ की बागडोर अपने हाथों में ली तो मेवाड़ी की स्थिति ना केवल शोचनीय थी बल्कि मेवाड़ चारों ओर से प्रबल शत्रुओ से भी गिरा हुआ था। दिल्ली सल्तनत से अभिषेक के समय सिकंदर लोदी , गुजरात में महमूद शाह बेगड़ा ,मालवा में नासिर शाह खिलजी उनके चारों ओर मंडरा रहे थे। सभी का महाराणा से सामना हुआ और सभी को मुंह की खानी पड़ी कोई भी राणा सांगा से पार नहीं पा सका ।
सांगा के लिए उस समय एक दोहा प्रचलित था
इब्राहिम पूर्व दिशान उलटे
पछप मुदफर न दै पयान
दखनी मुहम्मद शाह न दौड़े
संगो दामण ताऊ सुरताण
मालवा - महाराणा सांगा - महाराणा अपनी सुध-बुध के साथ मालवा को दबाये रखा । मालवा पर नसीरुद्दीन खिलजी का शासन था जिसने सांगा से लोहा लेने के बारे में सोच नही स्का ।
गागरोन युद्ध 1519 - मालवा के लिए गागरोन दुर्ग का महत्व उसी प्रकार था जैसे शेर के लिए दांत का राणा सांगा जब मेवाड़ लौटे तब सुल्तान महमूद खिलजी ने पीछे से गागरोन दुर्ग पर धावा बोल दिया मेदिनराय ने फिर से सांग को सहायता मांगी राजपूत शासक पीछे हटने वाले कहाँ थे । इस बार पहुंच कर इस बार लड़ाई आर पार की थी सुल्तान को बंदी बना लिया गागरोन युद्ध 1519 में सुल्तान को मुंह की खानी पड़ी और सांगा ने सुल्तान को बंदी बना लिया ।
राजस्थान के वीर योद्धा राणा सांगा ने केवल अपनी बहादुरी से प्रसिद्ध न था बल्कि मानवीय व्यवहार का भी अद्भुत परिचय दिया सांगा ने सुल्तान को मुक्त कर दिया और मालवा वापस दिया पहली बार मेवाड़ ने इस युद्ध में रक्षात्मक युद्ध के स्थान पर आक्रमण युद्ध का आरंभ हुआ गागरोन युद्ध के पश्चात सागा को मालवा संकट से मुक्ति मिल गई ।
संघर्ष अभी कहां खत्म होने वाला था हे राणा अभी तो आपको आसमान छूना है अभी तो और चलना है Vijaypath आगे बढ़ते रहना है अब बात करते --
राणा सांगा और गुजरात के संबंधों की राणा सांगा और गुजरात 1509 में राजतिलक के समय गुजरात का शासक महमूद बेगड़ा की हाथों में था। 1511 में उनकी मृत्यु के पश्चात उसका पुत्र मुजफ्फर शाह द्वितीय गुजरात की गद्दी पर आसीन हुआ। इधर में हस्तक्षेप इडर के राव भाणा के पुत्रों रायमल और भारमल में आपसी लड़ाई में राणा सांगा ने रायमल का साथ दिया और उसे गद्दी पर बैठा दिया।
ईडर के हस्तक्षेप से सांगा की गुजरात के सुल्तान में टकराव फिर से शुरू हो गया अब आप यह बता दे कि सांगा युद्द ही नही राजनीति कूटनीति का खेल भी अच्छी तरह से खेलना चाहता था मुजफ्फर का उत्तराधिकारी सिकंदर था परंतु उसका दूसरा पुत्र बहादुर शाह गद्दी पर आसीन होना चाहता था इसलिए यह राणा सांगा की शरण में चला गया मेवाड़ में रहते हुए राणा की माता ने बहादुर शाह को पुतवत स्नेह प्रदान किया ।राणा सांगा ने भी कई बार सहायता कर गुजरात लूट वाया इस प्रकार राणा ने अपनी राजनीति कूटनीति से गुजरात को दबाए रखने में सफल हुआ।
दिल्ली सल्तनत और राणा सांगा - राज्यभिषेक के समय सिकंदर लोदी का शासन था। सिकंदर लोदी ने आगरा नगर की स्थापना की थी । सिकंदर लोदी की मृत्यु के बाद उसका पुत्र इब्राहिम लोदी 22 नवंबर 1517 को दिल्ली के ताज पर आसीन हुआ ।
खातोली का युद्ध दिल्ली को जीतकर अपने अधिकार में कर लिया है राणा को सबक सिखाने की ठान ली सुल्तान ने मेवाड़ पर धावा बोल दिया उधर सांगा भी अपनी ताकत लोधी को दिखाना के लिये मैदानके आ गया तथा परिणाम स्वरुप 1517 में हाडोती की सीमा पर खातोली का युद्ध हुआ। युद्ध का नतीजा राणा सांगा के पक्ष में रहा और सुल्तान परास्त होकर वापस दिल्ली लौट गया ।
बाड़ी धौलपुर का युद्ध 1519 सुल्तान राणा से खातोली युद्ध में मिली शिकस्त का बदला लेने की ठानी और मियां मक्खन के नेतृत्व में शाही सेना सांगा के विरुद्ध भेजी । लेकिन परिणाम जस का तस रहा है एक बार फिर शाही सेना को मुंह की खानी पड़ी जिन्होंने सांगा की कीर्ति में चार चांद लगा दिए हैं और उनका कद ओर बढ़ गया । सुल्तान ने मेवाड़ की तरफ आंख उठाने की ही नहीं हिम्मत नहीं हो रही थी युद्ध की सोचना तो उसके लिए कोसों दूर की बात थी।
बाबर का आगमन काबुल का शासक बाबर तैमूर लंग के वंशज उमर शेख मिर्जा का पुत्र था कहा जाता है कि बाबर की मां चंगेज खान की वंशज में से थी । भारतीय इतिहास में 20 अप्रैल 1526 को पानीपत की प्रथम लड़ाई लड़ी गई। बाबर ने इब्राहिम लोदी को हराकर सल्तनत काल को जड़ से उखाड़ फेंका दिल्ली का ताज मुगलों के हाथों में आ गया । राणा सांगा की कीर्ति से डर भी लगने लगा कि यह राजपूत राणा कभी भी उसको हटा सकता है वह सोचने पर मजबूर हो गया। बाबर संपूर्ण भारत पर अपने साम्राज्य का परचम लहराना चाहता था । लेकिन उसकी राह में राणा सांगा था , ओर से पार पाए बिना उसका सपना साकार नहीं हो सकता।
बयाना युद्ध - 16 फरवरी 1527 को सांगा ने बाबर की सेना को हराकर बयाना दुर्ग पर कब्जा कर लिया बाबर को इसकी आशंका भी नहीं थी कि उसे पता नहीं था कि यह राजपूत शासक कि इतना खतरनाक भी हो सकता है उसके सपने को चकनाचूर कर सकता है अब बाबर सावधान हो गया और बदला लेने के लिए तैयारी करने लगा ।
भूल सांगा की - बयाना की विजय के बाद सांगा सीकरी जाने का सीधा मार्ग छोड़कर भुसावर होकर सीकरी जाने का मार्ग अपनाया । सांगा भुसावर में लगभग 1 महीने तक रुका रहा और इसमें बाबर को खानवा के मैदान में उपयुक्त स्थान पर पड़ाव डालने और उचित सैन्य संचालन का पर्याप्त समय मिल गया इसका परिणाम खानवा के युद्ध में आपने देखा ही होगा ।
खानवा का युद्ध 17 मार्च 1527 - में खानवा के मैदान में बाबर और राणा सांगा दोनों की सेनाओं के मध्य युद्ध हुआ ।सांगा चाहता था तो बाबर से सन्धि कर राज्य बचा सकता था लेकिन वह जानता था कि उसकी कीर्ति पर प्रश्नवाचक चिन्ह लगा देगी सकता था झुक नहीं सकता अपने स्वाभिमानी का यह उत्तम मिसाल दी। युद्ध में राणा सांगा के झंडे के नीचे राणा सांगा ने पाती पेरवन की राजपूत परंपरा को पुनर्जीवित कर के प्रत्येक सरदार को अपनी ओर युद्ध में शामिल होने का निमंत्रण भेजा । इस युद्द में राजपूतों की कोई ऐसी सरकार की होगी इस से कोई न कोई प्रसिद्ध व्यक्ति काम न आया होगा ।सांगा अंतिम हिंदू राजा थे जिन्होंने के नेतृत्व में सभी राजपूत राजा विदेशियो को बाहर निकलेने के लिए एक मंच पर आए ।
अंतिम समय- महाराणा सांगा खानवा युद्ध के हारने के बाद खाना के सांगा के सेनापतियों ने सैनिकों ने सांगा को बसवा ले आये पर जब सांगा को जब होश आया तो वह वापस युद्ध में आना चाहता था लेकिन राजपूत राजा इसके समर्थक नहीं थी इसलिए उन्हें संगा की प्रबल इच्छा को देखते हुए सांगा को जहर दे दिया परिणाम स्वरुप कालपी नामक स्थान पर 1528 में महाराणा सांगा की मृत्यु हो गई ।
सांगा अपने जीवन काल में उत्तम योद्धा के रूप में जाना गया मेवाड़ के महाराणा सांगा का जो स्थान है बहुत बड़ा है कुंभा ने विजय जरूर हासिल की उन्होंने कभी हार नहीं मानी कुंभा को कोई हरा नहीं सका लेकिन कुंभा और सांगा के समय किन-किन शासकों का प्रशासकों का समय था उसको देखते हुए अपने निजी व्यक्तिगत तौर से महाराणा सांगा को मेवाड़ का इतिहास ही नहीं संपूर्ण राजस्थान और भारतवर्ष के इतिहास में मेवाड़ के महाराणा सांगा को प्रथम स्थान पर रखा हूं।
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