मानसून का आरंभ
1. एक परंपरागत सिद्धांत -
21 मार्च के बाद सूर्य उत्तरायण होने पर उत्तर भारत में गर्मी बढ़ने लगती है और तापमान बहुत बढ़ जाता है इस कारण निम्न दाब क्षेत्र बन जाते हैं जो दक्षिणी गोलार्ध की व्यापारिक पवनें विषवत रेखा को पार कर कर इस ओर आकर्षित हो जाती है और दक्षिण पूर्वी मानसून पवने के रूप में भारतीय पवन तंत्र का अंग बन जाती है।
2. फ्लोन की प्रति विषुवतीय पछुआ पवन सिद्धांत --
उत्तरी पूर्वी व्यापारिक पवन व दक्षिणी पूर्वी व्यापारिक पवने के संपर्क के क्षेत्र आई टी सी जेड (अंतर उष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र) में प्रति विषुवतीय पछुवा पवने चलती है ।
जब सूर्य के उत्तरायण की स्थिति में ITCZ का उत्तरी सिरा भारतीय भूभाग की ओर खिसक जाता है (अधिकतम 30°N) तो यही पवनें दक्षिणी पूर्वी मानसून के रूप में भारत में वर्षा करती है ।
3. कोटेश्वरम का जेट स्ट्रीम सिद्धांत -
कोटेश्वरम के अनुसार ITCZ के उत्तरी खिसकाव से हिमालय के दक्षिण भाग में सक्रिय भाग में उपोषण पछुआ जेट स्ट्रीम का भी उत्तर की ओर खिसकाव जाता है।
इस समय हिमालय तथा तिब्बत के पठार के गर्म होने तथा गर्म हवाओं के ऊपर उठने से ऊपरी वायुमंडल में प्रति चक्रवर्ती स्थिति उत्पन्न होने के कारण पूर्वी जेट पवनों का आविर्भाव होता है ।
इसी क्रम में लंबी दूरी तय करने के कारण इनमे पर्याप्त नमी होती है इसलिए पर्वतीय कढालो के अभिमुखी क्षेत्र में पर्याप्त वर्ष होती है , विमुखी क्षेत्र वृष्टिछाया प्रदेश कहलाता है ।
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